चल
उठा
अपनें
भुट्टे, कोयले,
ये
जगह नहीं
लगाने की
दुकान -
मैंने
कहा।
वो डरा,
सकुचाया
और
काँपती
आवाज़ में
बड़बड़ाया -
बाबूजी,
है तो
नहीं
ये
कार पार्किंग
की भी
जगह ।
अवाक
मैं,
झन्नाया,
ज़ख़्मी सा,
तपाक
बरसा -
जा
मैं
और
मुझ जैसे
सारे,
नहीं खरीदते
तेरे
भुट्टे,
आज से,
ठीक है,
साब -
बेपरवाही से
वो
बोला -
नहीं
उठाते
मैं
और
मेरे जैसे भी,
आज से
तुम जैसों की
सत्ता।
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