Thursday, June 5, 2014

जज़बात

जाने
अनजाने
ऊँघते होश से
चीज़ों की तरह
जज़बात
जहाँ तहाँ
रखकर
भूलता रहा।

वक्त
बेवक्त
मौका
बेमौका
कहाँ कहाँ
मिलते रहे।

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