शबरी बनकर दिनों के बेर जब खिलाते हो, हर रोज़ के निवाले में आता है अर्थ का स्वाद।
अहिल्या समझकर छूता है जब तुम्हारा हर हाथ, पत्थर होनें का सवाल आ जाता है समझ।
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