उस खम्बे को भी आज छत को जर्जर दीवारों के सहारे कुछ वक्त को छोड़, हाथ नीचे कर बाहर आँगन में आ टेंशन में कश लगाते देखा।
क्रान्ति के विचारों की शाखाओं पर फूलों को खिलते देखा।
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