नैहर के करीब ऐसी ही सड़क थी, ऐसी ही घासनी, ऐसे ही चराती थी मैं पूरी पूरी दोपहर, बाबुल की गायें, जैसे हूँ चराती साठ साल बाद भी बेटे की, मरनें के बाद पति के।
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