Friday, May 16, 2014

घड़ियाल

घड़ियाल सा
रेंगता
चलता
बढ़ता
सत्ता का
स्थूल
तन्त्र,
बढ़ाता
बारी बारी,
कभी
वामपंथी
कभी
लामपंथी
पाँव,
छिपाता
भारी
पूँछ की
बेसब्र
हरकतों में
उमड़ते
इरादे,
मूँदे
आँखें,
बहा
कुछ
घड़ियाली
आँसू।

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