घड़ियाल सा रेंगता चलता बढ़ता सत्ता का स्थूल तन्त्र, बढ़ाता बारी बारी, कभी वामपंथी कभी लामपंथी पाँव, छिपाता भारी पूँछ की बेसब्र हरकतों में उमड़ते इरादे, मूँदे आँखें, बहा कुछ घड़ियाली आँसू।
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