लेटा सा बैठा हूँ आरामदेह कुर्सी पर घर की बालकोनी में बंद कर आँखें,
देखता कानों से, गुज़रती आवाज़ों के बिम्ब ।
क्या सुकून भरा मंज़र है, कितनी ख़ामोशी है ।
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