Sunday, May 4, 2014

ख़ामोशी

लेटा सा
बैठा हूँ
आरामदेह
कुर्सी पर
घर की
बालकोनी में
बंद कर
आँखें,

देखता
कानों से,
गुज़रती
आवाज़ों
के बिम्ब ।

क्या
सुकून भरा
मंज़र है,
कितनी
ख़ामोशी है ।

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