पूरब के
दरवाज़े पर
सूरज की
पहली
किरण
की
दस्तक
से भी
पहले
वो जो
मुहँ अँधेरे
बाहर
घर के
चहचहाई थी
कोई
चिड़िया,
क्या
उसे भी
रात भर
नींद
नहीं आई थी,
या थी
उसकी भी
वही
कहानी,
पते पर
उसके,
किसी की
कविता,
किसी के नाम,
सवेरे
की
पहली डाक
आई थी।
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