कमा रहा था होकर खर्च, देह के बटुये में रोज़ घट रहा था,
पहुँचा मेरी ज़िदों की ताबीर से लदे ऊँटों का कारवाँ मेरी दहलीज़, रसीद पर दस्तखत को मैं कहाँ था!
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