Thursday, May 29, 2014

कलाई

एक
था अमीर फ़कीर ।

था घूमता
शहर भर
पागलों सा,

उठाए
काँधे पर
बड़ा सा
बोरा,

बाँटते
निकाल
एक एक
घड़ी
उसमे से,

हर
उस शख्स़ को
जो
दिखता था
करता
कुछ भी
अच्छा,
बिन कहे,
खुद ही।

देखा नहीं
शायद
उसने
अभी तक
आपको,

या
हो न
कहीं
बंधी
उसी की घड़ी
इस समय
कलाई
आपकी,
देखिये तो !!!

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