Monday, May 12, 2014

मेकप

दुकानदार
अंकल,
मेकप
का
सामान
ज़रा
घटिया
देना,

अव्वल तो
कोई रंग
चढ़े न,
चेहरा
असली
मेरा
ढके न,

दबा दे
फिर भी
जो
मेरा अक्स
कहीं
परतों में
ये,
पलक
के
फ़लक की
एक बारिश
भी
टिके न,

फ़र्ज़ के
पसीनें में
घुल जाए,
मिट्टी
की माँज में
कुछ
बचे न |

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