Wednesday, May 28, 2014

पत्ते

गुज़र जा
आँधी तूफ़ान
की तरह ।

कम है
बची
जो
हवा
तेरे दमों में,

यूँ चलके
मौज के
दरख़्त तो
हिला,

कहाँ कहाँ से
गुज़रा था
निशानी तो छोड़,
यादों के
कुछ
पत्ते
तो गिरा।

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