Wednesday, May 7, 2014

भीतर

पुकारो
तो ज़रा
बाहर ही से
गुस्से में,
तिरस्कार से,

कहो तो
कोई
बात
भारी,

छेड़ो
दूर ही से भले
कोई
बात
पुरानी,

दबाओ
कोई
दुखती रग,
कुरेदो
कोई
भरा सा
खामोश
ज़ख्म,

दिलाओ
फिर याद
कोई याद
पुरानी,
उकसाओ
कुछ तो
बाहर ही से
सलाखों के,

देखूँ
तो ज़रा,
पिंजरे
के भीतर
की
कोठरी
में
है भी
वो
अभी
या
नहीं रहा ।

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