गर
मेरी तरह
हर
ज़र्रा
भी है
जागता
सोचता
देखता
सब कुछ,
और
ख़ुद को भी,
ये
किसनें,
कहाँ से
लाकर
रख छोड़ी है
दुनिया
सारी
कहाँ
क्यों
भरोसे
किसके?
हो न हो
यकीनन
बैठा
होगा
कहीं
यहीं
आसपास
बजाता बाँसुरी,
अपनीं
हम भेड़ों
को
छोड़ चरता
बेपरवाह...
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