Thursday, May 15, 2014

नींद

सपनों के
तकिये पर,
नींद के
बिस्तर में
बदल जाता
हर रात
बीते दिन की
सिलवटों भरी
ज़हन की
चादर
कौन?

ओढ़ा जाता
सांत्वना की
रजाई,
टाँग
भविष्य के
माथे
सुकून का
भीगा
बोसा ।

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