लोहे के
दस हाथों से
किनारे को
पक्का
पकड़,
लंगर डाले,
डोंगी का
किनारे से
आ टकराती
लहरों के थपेड़ों से
डोलना
नृत्य नहीं
ख़ुशी का,
छटपटाहट है
मुक्ति की।
लहरों के
बुलावे पर
बीच समन्दर
बिन बंधन
तूफ़ानों में
छूटने
भटक गुमनें
की है
पुरज़ोर कोशिश,
आनंद में
डूब तरने
की
तमन्ना ।
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