Saturday, May 17, 2014

तमन्ना


लोहे के
दस हाथों से
किनारे को
पक्का
पकड़,

लंगर डाले,

डोंगी का
किनारे से
आ टकराती
लहरों के थपेड़ों से
डोलना

नृत्य नहीं
ख़ुशी का,

छटपटाहट है
मुक्ति की।

लहरों के
बुलावे पर

बीच समन्दर
बिन बंधन
तूफ़ानों में
छूटने
भटक गुमनें
की है
पुरज़ोर कोशिश,

आनंद में
डूब तरने
की
तमन्ना ।

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