Sunday, May 18, 2014

सुबह शाम

सुबह
आते हो,
करके
सलाम
करते हो
इल्तेजा
कि
"झोली भरनें दो"

शाम को
करके
सिजदा
माँगते हो
माफ़ी,
झोली
जैसे कैसे
भर ही
लेनें से
तौबा
करते हो।

खाकर
बार आखिरी
कसम
धुल जानें का
स्वाँग
रचते हो।

कारोबारी,
मुझसे क्यों
व्यापार करते हो।

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