Monday, May 19, 2014

पश्चिम का आकाश

रुको
ठहरो
खोलो ज़रा
दरवाज़ा
फिर से
क्षण भर,
निकल जानें दो
बाहर,
भीतर फंसी
वो चिड़िया
लिए
मुहँ में
दानें |

करते होंगे
इंतज़ार
घोंसले में
इसके बच्चे
वो चार
देख
फीका पड़ता
ढलता
पश्चिम का
आकाश
और
क्षितिज से
आती
उड़ती
तेज़ तेज़
बिना
दानों के ही
सही
उनकी
माँ |

जल्दी करो
खोलो
दरवाज़ा,
उड़ जाने दो
उसे,

सूरज के
बुझनें से
पहले
दिशाओं को
पहचान,
पाँच जानों में
जान
आनें दो |

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